सीता रसोई मंदिर अयोध्या का महत्व एवम प्रचलित मिथ्या बाते

सीता रसोई जिसके बारे में कहा जाता है की यहां माता सीता ने कभी 5 महात्माओं को खाना खिलाया था। चलिए जानते सीता रसोई की कहानी एवम इस से जुड़ी मिथ्या बातें।

सीता रसोई मंदिर अयोध्या का महत्व

माता सीता राजघराने से थी तो उनको खाना बनाने की जरूरत नहीं थी लेकिन श्री राम जन्मभूमि के उत्तर पश्चिम हिस्से में स्थित इस भवन का नाम सीता रसोई है।

सीता रसोई वास्तव में कोई खाना बनाने का स्थान नहीं बल्कि एक मंदिर है जिसमे राम सीता, भरत मांडवी, लक्ष्मण उर्मिला एवम शत्रुघ्न श्रुतकीर्ति की मूर्तियां लगी हुई है।

राम जन्मभूमि के साथ सीता रसोई का जिक्र भी अयोध्या के प्रमुख मंदिरों के साथ किया जाता है।

सीता की रसोई अयोध्या

सीता रसोई से जुड़ी मिथ्या बातें

सीता रसोई के बारे में कुछ लोग कहते है की इस स्थान पर माता सीता खाना बनाती थी तो कुछ लोग कहते है की जब पहली बार माता सीता बहु के रूप में अयोध्या आई थी तब उन्होंने पूरे परिवार के लिए इसी स्थान पर खाना बनाया था। लेकिन यह भी कहा जाता है की माता सीता ने यह रस्म कभी पूरी नहीं की थी।

कुछ लोगो का यह भी मानना है की अयोध्या राजपरिवार के लिए इसी रसोई में खाना बनाया जाता था जिसका माता सीता ध्यान रखती थी एवम रसोइयों को जरूरी निर्देश देती थी

सीता रसोई के बारे में कहा जाता है की आज भी यहां खाना बनाने में काम आने वाले बर्तन रखे हुए है।

सीता माता को अन्नपूर्णा माता कहा गया

सबसे ज्यादा प्रचलित मान्यता यह है की माता सीता ने इस स्थान पर पांच ऋषियों को खाना खिलाया था जिसके बाद माता सीता को अन्नपूर्णा देवी कहा गया।

अन्नपूर्णा का अर्थ होता है पूरी दुनिया को भोजन कराने वाली देवी इसी लिए सीता रसोई के नाम पर अयोध्या में मुफ्त भोजन कराया जाता है।

सीता रसोई

सीता जी ने कहां और कब खाना बनाया था

अयोध्या में माता सीता को भोजन बनाने की आवश्यकता नहीं थी किंतु वनवास के समय जब माता सीता प्रभु श्री राम के साथ गई थी तो अपना एवम श्री राम लक्ष्मण का खाना अपने हाथों से ही बनती थी।

वनवास का अधिकांस समय उन्होंने चित्रकूट पर्वत पर बिताया था एवम चित्रकूट पर्वत पर भी सीता रसोई बनी हुई है।

इसी प्रकार जब राम जी ने माता सीता का त्याग किया था उस समय लक्ष्मण जी माता सीता को महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में छोड़ कर गए थे।

वाल्मीकि आश्रम में माता सीता अपना भोजन स्वयं बनाती थी जंगल से लकड़ियां भी काट कर लाती थी। यहां भी सीता रसोई बनी हुई है।

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